अदालत से लौट आई कांगड़ा एयरपोर्ट की पैमाइश। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार की राहत एवं पुनर्वास प्रक्रिया के आश्वासन को अहमियत देते हुए हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को निरस्त किया है। अदालत ने एक तरह से संपूर्ण परियोजना के पक्ष से जुड़ी संभावनाओं को बरकरार रखा है। हिमाचल के विकास और भविष्य के लिए सर्वाेच्च न्यायालय के इस फैसले का असर केवल कांगड़ा एयरपोर्ट तक ही नहीं, बल्कि इसकी रोशनी में विकास की तमाम अड़चनों की समीक्षा तक यह फैसला पहुंचता है। हिमाचल विशेष भौगोलिक परिस्थितियों में फंसा हुआ ऐसा पर्वतीय राज्य है, जिसकी सत्तर फीसदी जमीन पर वन विभाग का अनावश्यक कब्जा है। दूसरी ओर विकास के जरिए आर्थिकी की खोज में उपयुक्त सार्वजनिक जमीन का टोटा खलल डालता है। ऐसे में भविष्य की जरूरतों को रेखांकित करती परियोजनाओं के साथ नागरिक समाज का योगदान तथा पुनर्वास की कसौटियों का समाधान भी प्रश्रों के दायरे बड़े करता रहेगा। हालांकि भूमि संबंधी हिमाचल की बढ़ती जरूरतें यह मांग कर रही हैं कि प्रदेश के वन क्षेत्र को घटा कर पचासरूपचास के आधार पर राज्य सरकार को अतिरिक्त जमीन उपलब्ध हो। इसके अलावा विस्थापन के तर्क अब हिमाचल के लिए एक कड़ा शीर्षासन इसलिए भी हैं क्योंकि राज्य ने लैंड सीलिंग एक्ट के जरिए किसान से खेत छीन कर उसे छोटी-छोटी पट्टी बना दिया जो पारिवारिक बंटवारों में अब सिर्फ अदालती युद्ध है। मुजारों में आबंटित जमीनें या छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त हैं या भू-माफिया के चंगुल में बिक रही हैं।
कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना व अन्य जिलों में अब खेत खेती के लिए नहीं, बिकने के लिए हाजिर हैं। राज्य ने पहले ही नौतोड़ के तहत जमीन बांटकर इन्हें सौदागरों के हाथ में पहुंचा दिया। बहरहाल जिस प्रदेश में अनाज, दालें, दूध, ब्रेड और सब्जियां तक दूसरे राज्यों से आते हों वहां किसान का किरदार इतना भी मोहताज नहीं कि हर जमीन के टुकड़े को बेडिय़ां पहना दी जाएं। अलबत्ता उपलब्ध जमीन को नए रोजगार से जोडऩे की संभावनाएं तथा नकदी फसलों के लिए लैंड पूलिंग के जरिए कोआपरेटिव खेती की तरफ बढऩा होगा। हिमाचल में कई प्रगतिशील किसान लीज पर जमीन लेकर व्यापार कर रहे हैं, तो कृषि उत्पादन की प्रवृत्ति बदल रही है। हम यह इसलिए कह रहे हैं कि अब हिमाचल में खेत को खेती की नुमाइश में नहीं, व्यापार की आजमाइश में बांटा और काटा जा रहा है। खैर कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार की चूलें हिलाने के लिए जनांदोलन व न्याय के रास्ते पर खड़े सबूत सुप्रीम कोर्ट ने अलग परिप्रेक्ष्य में देखें हैं, तो सरकार की ईमानदार कोशिश से पुनर्वास का समर्थन भी हो रहा है। सरकार उचित मुआवजे के साथ-साथ विस्थापितों को बसाने के लिए जमीन तय कर चुकी है, जबकि कुछ जेब खर्चा परिवार के सदस्यों को कुछ समय तक मिलता रहेगा। यह दीगर है कि सरकार को कांगड़ा एयरपोर्ट के विस्थापितों को रोजगार के बदले रोजगार से जोडऩे के लिए जिला की पर्यटन परियोजनाओं से जोडऩा होगा।
मसलन एयरपोर्ट के साथ एक व्यापारिक कोरिडोर बना कर विस्थापित हो रही व्यापारिक इकाइयों का पुनर्वास किया जा सकता है। इसके अलावा धर्मशाला तथा पालमपुर में प्रस्तावित पर्यटन गांव की संभावना में पुनर्वास को वरीयता दी जाए। चाहे बनखंडी का चिडिय़ाघर, नगरोटा-पालमपुर की पर्यटन परियोजनाएं हों, इनमें एयरपोर्ट विस्थापितों के धंधों को आरक्षण मिलना चाहिए। कहना न होगा कि हिमाचल सरकार की पेशकश में कांगड़ा एयरपोर्ट विस्थापन को हाथों हाथ लिया है तथा इसकी संपूर्णता में एक बेहतरीन पुनर्वास नीति सामने आई है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार की ओर से पेश किए गए पुनर्वास आश्वासन को तर्क संगत तथा व्यावहारिक पाया है। उम्मीद यह करनी चाहिए कि अब सारे अवरोधक हट जाएंगे तथा समय सीमा के भीतर कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार की जमीन कांगड़ा की आर्थिक सदी को बदलने का नक्शा बनाएगी। इस परियोजना के अनुभव से सरकार विस्थापन की त्रासदी को समझने में सफल होती है, तो इसी तर्ज सरकार को अपनी पुनर्वास नीति को पारदर्शिता के साथ घोषित कर देना चाहिए।
लौट आई एयरपोर्ट की पैमाइश

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