लखनऊ।सत्तारूढ़ दल की छोटे दलों के साथ मजबूत किलेबंदी के बीच सपा-कांग्रेस से छिटकते छोटे दल चुनाव में आइएनडीआइए गठबंधन का खेल बिगाड़ते दिख रहे हैं। लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर बीते दिनों जब पक्ष-विपक्ष की खेमेबंदी हो रही थी तो आजाद पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद और अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल को आइएनडीआइए का भरोसेमंद सहयोगी माना जा रहा था।
बात बिगड़ने पर पर चंद्रशेखर आजाद अपनी पार्टी के बैनर तले नगीना संसदीय सीट नगीना से चुनाव लड़ रहे हैं और इन दिनों ”वाई प्लस सिक्योरिटी” के साथ चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं।
वहीं, सपा से नाराज पल्लवी पटेल ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम के साथ अलग गठबंधन कर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने बढ़ाई मुश्किलें
सपा से अलग हो स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी का गठन कर कुशीनगर से चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव को चेताया है। मौर्य पांच पांच सीटों पर प्रत्याशी दे सकते हैं। अपना दल (कमेरावादी) और आइएनडीआइए की संयुक्त टीम ने भी डेढ़ से दो दर्जन सीटों पर प्रत्याशी देने के संकेत दिए हैं।
विपक्षी खेमे में अपनी सम्मानजनक जगह पाने में नाकाम रहे छोटे दलों का कुनबा परिणाम के मोर्चे पर कुछ कमाल कर पाएगा, इसमें संशय हो सकता है लेकिन सपा-कांग्रेस के तय गुणा-गणित को तो सीधे तौर पर प्रभावित कर ही सकता है।
सपा के ”पीडीए” के जवाब में एआइएमआइएम और अपना दल (कमेरावादी) का ”पीडीएम” (पिछड़ा, दलित और मुसलमान) का नारा यह स्पष्ट बता रहा है कि इनकी नजर विपक्ष के कोर वोट बैंक पर ही है। यूपी में लंबे समय से जनाधार तलाश कर रहे ओवैसी को भी अपने इस नए गठबंधन में संभावनाएं दिख रहीं हैं।
बता दें कि लोकसभा चुनाव की घोषणा के पूर्व एआइएमआइएम ने यूपी में 20 सीटों से प्रत्याशी देने की बात कही थी लेकिन पहले चरण की आठ सीटों के लिए उन्होंने कोई उम्मीदवार नहीं दिया। ऐसा माना जा रहा था कि एआइएमआइएम विपक्ष को वाकओवर दे सकता है लेकिन रामपुर सीट से डा. एसटी हसन का टिकट कटने के साथ ही ओवैसी प्रदेश की राजनीति में अचानक सक्रिय हो गए।
अपना दल (कमेरावादी) और आइएनडीआइए का गठबंधन भी उसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि एआइएमआइएम को उत्तर प्रदेश में अभी तक कोई खास सफलता हासिल नहीं हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में एआइएमआइएम ने 95 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, ओवैसी ने खूब प्रचार भी किया लेकिन कुछ परिणाम हासिल नहीं हुआ।